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नई दिल्ली: बीजेपी ने जहां महाराष्ट्र में महा जीत दर्ज की है वहीं झारखंड में बीजेपी हेमंत सोरेन के किले में सेंध नहीं लगा पाई। बीजेपी ने एक हैं तो सेफ हैं का नेरेटिव झारखंड से शुरू किया लेकिन इस नेरेटिव ने झारखंड में काम नहीं किया। हालांकि इसका फायदा बीजेपी को महाराष्ट्र में मिला। महाराष्ट्र में बीजेपी को लाडकी बहिना योजना का फायदा मिला तो वहीं झारखंड में ये फायदा हेमंत सोरेन को मईंया योजना से मिला।नेरेटिव की जंग में आगे और वोटर्स को बूथ तक ले जाना
महाराष्ट्र में बीजेपी को हरियाणा चुनाव से मिले सबक और इसे लागू करने का भी बड़ा फायदा मिला। बीजेपी ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' का जो नेरेटिव शुरू हुआ और उसे थोड़ा सॉफ्ट कर इसे 'एक हैं तो सेफ है' का नारा बनाया। इस नेरेटिव को बीजेपी ने कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया। महायुति के साथियों की आपत्ति के बावजूद बीजेपी इस पर पूरे अग्रेसिव तरीके से डटी रही। साथ ही हरियाणा से जो सबक मिला था कि अपने वोटर्स को पोलिंग बूथ तक लेकर जाना है।
बीजेपी ने शुरू से ही ये सुनिश्चित किया कि उनकी तरफ झुकाव वाले वोटर्स घर पर ना बैठें और वोट देने जरूर जाएं। लाडकी बहिन योजना के तहत मिलने वाली राशि को 1500 से बढ़ाकर 2100 करने का वादा भी महिलाओं ने पसंद किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपनी पूरी ताकत लगाई थी और ये नेरेटिव बनाया कि बीजेपी जब सत्ता में नहीं होती तो हिंदुओं पर हमले बढ़ जाते हैं। घर-घर तक इस नेरेटिव को पहुंचाने के लिए संघ के विभिन्न संगठनों के लोगों ने भी काम किया। पूरा चुनाव मैनेजमेंट और बूथ मैनेजमेंट तो बीजेपी के लिए एक सकारात्मक पहलू रहा ही है।
बीजेपी के चुनाव सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के अग्रेसिव बयान आते रहे। दिल्ली से गए पार्टी के सीनियर नेताओं ने भी घुसपैठियों के मसले पर ही हेमंत सोरेन और कांग्रेस को घेरने की कोशिश की। लेकिन यह बीजेपी के काम नहीं आया। झारखंड में हमेशा से ही निर्दलीय भी जीतते रहे हैं। यहां स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं।
घुसपैठियों के मुद्दे को ओवर प्ले करने के चक्कर में बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों पर उतना फोकस नहीं किया। जिसका बीजेपी को नुकसान हुआ। साथ ही बीजेपी हेमंत सोरेन के सामने कोई चेहरा भी नहीं दे पाई। पूरे चुनाव में बीजेपी की ओर से किसी झारखंड के नेता के बजाय हिमंत बिस्वा शर्मा का चेहरा और उनके बयान ही छाए रहे।
पार्टी में इन दोनों नेताओं का कद लगातार बढ़ भी रहा है और महाराष्ट्र के नतीजे इस पर और पॉजिटिव असर डाल सकते हैं। दूसरी तरफ झारखंड में बीजेपी को लगे झटके का असर वहां के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और असम सीएम हिमंता बिस्व सरमा पर पड़ सकता है। दोनों ही नेता वहां लगातार बयान देते रहे। हिमंता बिस्व सरमा घुसपैठियों के मसले पर बेहद आक्रामक रहे।
नेरेटिव की जंग में आगे और वोटर्स को बूथ तक ले जाना
महाराष्ट्र में बीजेपी को हरियाणा चुनाव से मिले सबक और इसे लागू करने का भी बड़ा फायदा मिला। बीजेपी ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' का जो नेरेटिव शुरू हुआ और उसे थोड़ा सॉफ्ट कर इसे 'एक हैं तो सेफ है' का नारा बनाया। इस नेरेटिव को बीजेपी ने कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया। महायुति के साथियों की आपत्ति के बावजूद बीजेपी इस पर पूरे अग्रेसिव तरीके से डटी रही। साथ ही हरियाणा से जो सबक मिला था कि अपने वोटर्स को पोलिंग बूथ तक लेकर जाना है।बीजेपी ने शुरू से ही ये सुनिश्चित किया कि उनकी तरफ झुकाव वाले वोटर्स घर पर ना बैठें और वोट देने जरूर जाएं। लाडकी बहिन योजना के तहत मिलने वाली राशि को 1500 से बढ़ाकर 2100 करने का वादा भी महिलाओं ने पसंद किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपनी पूरी ताकत लगाई थी और ये नेरेटिव बनाया कि बीजेपी जब सत्ता में नहीं होती तो हिंदुओं पर हमले बढ़ जाते हैं। घर-घर तक इस नेरेटिव को पहुंचाने के लिए संघ के विभिन्न संगठनों के लोगों ने भी काम किया। पूरा चुनाव मैनेजमेंट और बूथ मैनेजमेंट तो बीजेपी के लिए एक सकारात्मक पहलू रहा ही है।
घुसपैठी मुद्दे को ओवर प्ले करने से बाकी मुद्दे छूट गए
झारखंड में बीजेपी हेमंत सोरेन के किले में सेंध लगाने में सफल नहीं रही। यहां भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों ने बीजेपी के पक्ष में काम किया था लेकिन बीजेपी नंबर गेम में काफी पीछे रह गई। बीजेपी ने यहां पहले भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की। लेकिन कल्पना सोरेन के लगातार प्रचार और बीजेपी में दलबदुलओं को शामिल करने से बीजेपी भ्रष्टाचार के नेरेटिव को खड़ा नहीं कर पाई। उलटे हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति ने काम किया। बीजेपी ने यहां घुसपैठियों के मुद्दे को ओवर प्ले किया।बीजेपी के चुनाव सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के अग्रेसिव बयान आते रहे। दिल्ली से गए पार्टी के सीनियर नेताओं ने भी घुसपैठियों के मसले पर ही हेमंत सोरेन और कांग्रेस को घेरने की कोशिश की। लेकिन यह बीजेपी के काम नहीं आया। झारखंड में हमेशा से ही निर्दलीय भी जीतते रहे हैं। यहां स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं।
घुसपैठियों के मुद्दे को ओवर प्ले करने के चक्कर में बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों पर उतना फोकस नहीं किया। जिसका बीजेपी को नुकसान हुआ। साथ ही बीजेपी हेमंत सोरेन के सामने कोई चेहरा भी नहीं दे पाई। पूरे चुनाव में बीजेपी की ओर से किसी झारखंड के नेता के बजाय हिमंत बिस्वा शर्मा का चेहरा और उनके बयान ही छाए रहे।
वैष्णव-यादव छाए तो हिमंता-शिवराज को झटका
महाराष्ट्र की जीत में बीजेपी के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव और सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव की भूमिका की भी चर्चा है। 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी ये दोनों ही प्रभारी और सह प्रभारी थे। मध्य प्रदेश में भी बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की थी। इन दोनों केंद्रीय मंत्री ने रणनीति बनाई और मैनेजमेंट की कमान संभाली। नतीजों ने दिखाया कि ये सफल भी रही।पार्टी में इन दोनों नेताओं का कद लगातार बढ़ भी रहा है और महाराष्ट्र के नतीजे इस पर और पॉजिटिव असर डाल सकते हैं। दूसरी तरफ झारखंड में बीजेपी को लगे झटके का असर वहां के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और असम सीएम हिमंता बिस्व सरमा पर पड़ सकता है। दोनों ही नेता वहां लगातार बयान देते रहे। हिमंता बिस्व सरमा घुसपैठियों के मसले पर बेहद आक्रामक रहे।
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